कांवड़ क्या होती है ? क्यों चढ़ाते हैं व कितने प्रकार की होती है?
सावन के महीने में हजारों की संख्या में लाल कपड़े पहने भोले बाबा के भक्त हर सड़क पर दिख जाएंगे । यदि उन्हें देखकर आपके भी मन में यह सवाल आता है कि ये लाल कपड़ा पहनने वाले लोग कौन से हैं तथा ये कहां जा रहे हैं तो आपके बताते चलें इन्हें कावडिंया कहा जाता है और ये भगवान शिव के भक्त मां गंगा का जल लाकर भोले बाबा के मंदिर में चढ़ाते हैं। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कांवड़ चढ़ाने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं । यदि आप भी कांवड़ यात्रा में जाना चाहते हैं अथवा इससे संबंधित जानकारी चाहते हैं तो हम बने रहिए हमारे साथ इस आर्टिकल में यहां हम आपको बताएंगे कांवड़ यात्रा के बारे में पूरी जानकारी …
कांवड़ क्यों चढ़ाते हैं?
कांवड़ चढ़ाने को लेकर तमाम विद्वान विभिन्न प्रकार की अलग अलग जानकारी बताते हैं ।लेकिन अधिकतर लोगों और विद्वानों के अनुसार कांवड़ यात्रा मनाने का मुख्य कारण समुद्र मंथन में भगवान शिव के विष पीने के बाद उन पर आए नशे और उसके दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिए शिव भक्तों द्वारा कांवर चढ़ाई जाती है ।
कांवर चढ़ाने के पीछे की कहानी क्या है?
विभिन्न पौराणिक ग्रंथों व विभिन्न मतों के अनुसार कांवर चढ़ाने के पीछे एक कहानी अत्यंत प्रचलित है। इसके पीछे एक बहुत प्रसिद्ध कथा आती है कि एक समय ऐसा आया जब देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया शुरू किया । समुद्र के मथने से भांति भांति प्रकार की दुर्लभ वस्तुएं देवताओं और दैत्यों को मिलने लगीं । धन , लक्ष्मी और अमृत मिलने के बाद एक समय ऐसा आया जब समुद्र से विष का खतरनाक प्याला निकला ऐसी मान्यता है कि वो विष का प्याला इतना खतरनाक था कि अगर प्रथ्वी पर उसकी एक बूंद भी छिटक जाती तो पूरी सृष्टि का विनास हो जाता । देवताओं और राक्षसों के अनुनय विनय से भगवान भोलेनाथ ने उस विष को पी लिया जिसके प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया । इस घटना के बाद भगवान शिव को नकारात्मक प्रभावों ने घेराव शुरू कर दिया । रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था । उससे भगवान शिव की यह स्थिति देखी नहीं गई । रावण ने भगवान शिव को विष के प्रभाव से मुक्त करने के लिए मां गंगा का पावन जल से शिव जी का अभिषेक किया । ऐसी मान्यता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई ।
कौन चढ़ा सकता है कांवड़?
जब हम लोग कांवड़ लेकर जाने वाले लोगों को देखते हैं तो अक्सर हमारे मन में भी ये सवाल उठता है कि आखिर कांवड़ को कौन-कौन चढ़ा सकता है। इसके लिए आपको बता दें कावड़ कोई भी इंसान चढ़ा सकता है चाहे वह पुरुष हो या महिला । अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी उम्र में कांवड़ चढ़ाना अत्यंत फलदाई है । ऐसी मान्यता है भगवान शिव के मंदिर पर कावड़ चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होकर उस भक्त को सदैव प्रसन्न रहने का वरदान देते हैं तथा उसकी हर प्रकार के कष्टों से रक्षा करते हैं । कुछ समय पहले तक अधिकतर पुरुष ही कावड़ यात्रा के जत्थे में दिखाई देते थे लेकिन अब पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी भगवान शिव की आराधना के लिए उन पर जल का अभिषेक करने के लिए कांवर लेकर बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ जाती हुई दिखाई देती हैं । इसलिए यदि आप कावड़ यात्रा में साथ जाना चाहते हैं और भगवान शिव के मंदिर पर गंगा जल चढ़ाना चाहते हैं और आप इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं तो किसी भी उम्र में आप सावन के महीने में गंगा घाट से जल भरकर कांवड़ यात्रा प्राचीन शिव मंदिर में काम चढ़ा सकते हैं।
कांवड़ यात्रा का महत्व क्या है?
कांवड़ लेकर यात्रा करना बेहद कठिन काम है। भगवान शिव के भक्त भगवान शिव के भक्त घर से सैकड़ों किलोमीटर की दूरी की पैदल यात्रा करते हैं तथा वापस भगवान शिव के किसी प्राचीन मंदिर पर कांवड़ चढ़ाते हैं । इसलिए इस मेहनत भरे काम को करने वाले भक्तों के प्रति भगवान शिव की विशेष आस्था रहती है । ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव पर कावड़ चढ़ाने से भगवान शिव उस भक्त पर अत्यंत प्रसन्न होते हैं तथा उसके सारे कष्टों को दूर कर देते हैं । भगवान शिव पर गंगाजल चढ़ाने से उन्हें असीम शांति का अनुभव होता है इसलिए कांवड़ चढ़ाने वाले लोगों भक्तों पर वे अत्यंत प्रसन्न रहते हैं इसलिए कांवड़ चढ़ाने का सनातन धर्म में अत्यंत महत्व है।
कांवड़ कब चढ़ाई जाती है ?
कावड़ चढ़ाने को लेकर कोई विशेष नियम नहीं है लेकिन फिर भी हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सावन महीने में भगवान शिव पर कांवर चढ़ाने का विशेष लाभ प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले जब भगवान परशुराम ने भगवान शिव शंकर पर कांवड़ चढ़ाया था तो उस समय सावन का ही महीना था इसलिए भारत में सबसे अधिक कावड़ यात्राएं सावन में ही होती हैं। यदि आप भी भगवान शिव के मंदिर में कांवड़ लेकर जाना चाहते हैं तो सावन का महीना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। यदि कोई शिव भक्त अन्य किसी महीने में कांवड़ चढ़ाना चाहता है तो उसे लिए सावन महीने की कोई बाध्यता नहीं है वो कभी भी भगवान शिव के मंदिर में कांवड़ चढ़ा सकता है ।
कांवड़ कितने प्रकार की होती है ?
हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कांवड़ यात्रा युआन प्रकार से होती है ।
- सामान्य कांवड़ – इस कांवड़ यात्रा में भक्त अपनी सुविधा के अनुसार कई जगहों पर आराम करते हुए भगवान शिव के मंदिर तक पहुंचते हैं ।
- डाक कांवड़ – इस कांवड़ यात्रा के ए माध्यम से जब तक भगवान शिव के भक्त भगवान शिव तक गंगाजल नहीं पंहुचा देते हैं जब तक वे बीच में रुकते नहीं हैं।
- दांडी कांवड़ – कांवड़ ले जाने की यह विधि अत्यंत कठिन होती है । इस विधि द्वारा कांवड़ ले जाने के लिए भक्त मां गंगा से जल भरने के बाद भगवान शिव के मंदिर तक पहुंचने के लिए दंड विधि द्वारा दूरु तय करते हैं । कभी कभी इस कांवड़ यात्रा से लोगों को मां गंगा के घाट से शिव मंदिर तक जाने के लिए कई महीने लग जाते हैं।
कांवड़ कहां चढ़ाई जाती है?
गंगाजल से भरी हुई कांवड़ किसी भी प्राचीन शिव मंदिर पर चढ़ाई जा सकती है । अत्यंत प्रसिद्ध कुछ शिव मंदिरों पर भक्तों की भारी भीड़ देखी जाती है । उत्तराखंड के हरिद्वार में सावन भर कांवड़ियां भारी संख्या में देखें जाते हैं । वहां के तमाम मंदिरों पर हजारों की संख्या में प्रतिदिन कांवड़ चढ़ाई जाती है ।
कांवड़ कहां भरी जाती है ?
कांवड़ भरने का सबसे उपयुक्त स्थान मां गंगा का घाट होता है मां गंगा के पावन किनारे से गंगा का जल भरकर भगवान शिव के मंदिर में समर्पित करना और भगवान शिव का अभिषेक करना अत्यंत फलदायक है। अभी अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी स्थान से जहां मां गंगा का पावन किनारा अच्छे से आपकी पहुंच में हो वहां से कांवड़ भरकर भगवान शिव के मंदिर पर समर्पित कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद के गढ़मुक्तेश्वर धाम में हजारों की संख्या में कावड़िया जल भरते हैं इसके पीछे की एक मान्यता यह है कि भगवान परशुराम ने सबसे पहले कावड़ इसी जगह से भरी थी ।
Frequently Ask Questions ( FAQ)
1 – कांवड़ जल कब चढ़ेगा 2023 में ?
भगवान शिव पर चढ़ने वाला कावड़ का जल सावन महीने के शुरूआत होते ही चढ़ने लगता है । इस साल 2023 में भी जैसे ही सावन का महीना शुरू होगा आपको सड़कों पर कांवड़िए नजर आने लगेंगे।
2- कावड़ यात्रा कितने दिन तक चलती है?
सावन से शुरू होकर कावड़ यात्रा पूरे 1 महीने तक बड़े धूमधाम के साथ चलती है इस 1 महीने के अंतराल में जगह-जगह पर कावड़िए देखे जा सकते हैं ।
3- कावड़ यात्रा के कितने प्रकार है?
कांवड़ यात्रा 3 तरह से चलाई जा सकती है पहली सामान्य कावड़ यात्रा दूसरी डाक कांवड़ यात्रा तीसरी दांडी कावड़ यात्रा।
4- डाक कांवड़ यात्रा कैसे होती है ?
इस कांवड़ यात्रा के ए माध्यम से जब तक भगवान शिव के भक्त भगवान शिव तक गंगाजल नहीं पंहुचा देते हैं जब तक वे बीच में रुकते नहीं हैं।
5- दांडी कांवड़ यात्रा कैसे होती है ?
कांवड़ ले जाने की यह विधि अत्यंत कठिन होती है । इस विधि द्वारा कांवड़ ले जाने के लिए भक्त मां गंगा से जल भरने के बाद भगवान शिव के मंदिर तक पहुंचने के लिए दंड विधि द्वारा दूरु तय करते हैं । कभी कभी इस कांवड़ यात्रा से लोगों को मां गंगा के घाट से शिव मंदिर तक जाने के लिए कई महीने लग जाते हैं।
6- कांवड़ यात्रा कहां समाप्त होती है ?
कांवड़ यात्रा गंगा का जल भरकर किसी भी प्राचीन शिव के मंदिर पर अभिषेक करने के बाद समाप्त मानी जाती है विशेष रूप से ऋषिकेश में कांवड़ यात्रा के समापन का फल विशेष फलदाई माना गया है। लेकिन यदि आप ऋषिकेश में पहुंचने में असमर्थ हैं तो आप अपने क्षेत्र में किसी भी प्राचीन भगवान शिव के मंदिर पर मां गंगा का जल भगवान शिव को समर्पित कर सकते हैं।