कांवड़ यात्रा का इतिहास क्या है? Kanwad yatra ka itihas

By | February 18, 2023

Kanwad yatra ka itihas

Kanwad yatra ka itihas : सावन का महीना शुरू होते ही पूरे देश भर कांवर यात्राएं निकलने लगती है। सावन के महीने में छोटे से छोटे गांव से लेकर बड़े से बड़े शहर तक सिर्फ शिव भक्त और कांवड़ ही दिखाई देते हैं। भूत-भावन भगवान शिव के भक्त मां गंगा से जल भरकर भगवान शिव के मंदिर पर चढ़ाते हैं। कांवड़ यात्रियों के लिए अलग अलग जगहों पर विभिन्न भंडारे देखने को मिलते हैं । कांवड़ यात्रा के इतिहास के संबंध में अलग-अलग धार्मिक मत हैं। कुछ पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरुआत त्रेता युग में श्रवण कुमार से हुई तो कुछ विद्वान ऐसा भी मानते हैं कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत उससे पहले से ही हो चुकी थी । आज हम इस आर्टिकल में विभिन्न मतों और विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कांवड़ यात्रा का इतिहास जानने का प्रयास करेंगे । 

श्रवण कुमार ने शुरू की थी कांवड़ यात्रा

श्रवण कुमार भारतीय संस्कृति के एक प्रमुख पात्र हैं । जब भी भारत में किसी अच्छे पुत्र की बात होती है तो लोग आज भी श्रवण कुमार का उदाहरण देने से नहीं चूकते । त्रेता युग में जन्मे श्रवण कुमार की कथा कुछ इस प्रकार से आती‌ है । श्रवण कुमार ‌अपने माता और पिता के इकलौते पुत्र थे । दुर्भाग्यवश उनके माता-पिता की आंखें समय के साथ चली गईं और उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता था ‌। श्रवण कुमार अपने माता पिता की खूब सेवा करते थे ‌। एक दिन उनके माता और पिता ने हरिद्वार घूमने की इच्छा की । चूंकि श्रवण कुमार के माता व पिता दोनों अंधे थे । उस समय यातायात के कोई सुलभ साधन भी नहीं थे । अंधे और वृद्ध माता पिता पैदल चल पाने की स्थिति में भी नहीं थे । इसलिए उनको तीर्थाटन करा पाना अत्यंत दुष्कर काम था । लेकिन श्रवण कुमार की पितृ भक्ति और मातृ भक्ति इतनी प्रबल थी कि उन्होंने अपने माता और पिता को अपने कंधों पर बिठाकर तीर्थाटन कराने का फैसला लिया । श्रवण कुमार और उनके माता पिता हिमाचल प्रदेश के ऊना नामक स्थान के रहने वाले थे । वहां उन्होंने अपने माता और पिता को कांवड़ जैसी संरचना बनाकर एक पलड़े में मां तथा एक पलड़े में पिता जी को बिठाया । इसके बाद वे भारत भर के अलग अलग तीर्थ स्थलों पर पहुंच कर अपने बूढ़े और अंधे माता पिता को दर्शंन कराते थे ‌। धीरे धीरे वे हरिद्वार पहुंचे और वहां से गंगा जल भरकर भूत भावन भगवान भोलेनाथ के दरबार में अभिषेक किया ‌। ऐसी मान्यता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई । 

परशुराम ने शुरू की थी कांवड़ यात्रा

हिंदू धर्म के विभिन्न पौराणिक ग्रंथ व विद्वान यह भी मानते हैं कि भारतीय संस्कृति में कांवड़ यात्रा की शुरुआत सर्वप्रथम परशुराम जी ने किया था । परशुराम जी भगवान शिव के अनन्य उपासक थे । वे शिव के परम भक्त थे तथा भारतीय संत परम्परा में जिन जिन संतों को अत्यधिक क्रोध आता है , वे उन सबमें सबसे ऊंचा स्थान रखते थे ‌। रामायण में भी परशुराम जी कथा का वर्णन आता है ‌। जब भगवान श्री राम जनक जी द्वारा आयोजित धनुष यज्ञ में धनुष मां सीता से विवाह करने के लिए धनुष तोड़ देते हैं उस समय भगवान परशुराम का प्रवेश व उनके क्रोध की अत्यंत रोचक कथा का वर्णन रामायण में देखने को मिलता है ‌। कुछ विद्वान मानते हैं कि भगवान परशुराम जी ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी ‌। विद्वानों के अनुसार भगवान परशुराम उत्तर प्रदेश के बागपत में स्थित ‘पुरा महादेव ‘ में कांवड़ और गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक कर इस कांवड़ यात्रा का शुभारंभ किया था।‌ भगवान परशुराम पुरा महादेव में गंगा जल गढ़मुक्तेश्वर धाम से लेकर आए थे । गढ़ मुक्तेश्वर धाम वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद में स्थित है वहां मां गंगा की बेहद सुहावनी धारा प्रवाहित होती है । आज भी इस घाट से लाखों की संख्या में लोग कांवड़ भरकर भगवान शिव के विभिन्न मंदिरों में चढ़ाते हैं। वर्तमान समय में गढ़मुक्तेश्वर को ब्रज घाट के नाम से भी जानते हैं। 

भगवान राम ने शुरू किया था कांवड़ यात्रा

भगवान राम अयोध्या के राजा थे । माता पिता की आज्ञा के अनुसार वे चौदह वर्षों के वनवास के लिए अपने राज्य से दूर जंगल जंगल भटक रहे थे । इसी दौरान उनकी पत्नी सीता को लंका के रावण के द्वारा छल पूर्वक हरण कर लिया गया जिसके बाद भगवान श्री राम जंगल और पर्वतों पर मसीता की खोज करने लगे । रास्ते में उनकी भेंट बंदरों के एक समूह से हुई जिन्होंने उनकी सहायता करने का वचन दिया ‌। जब भगवान श्री राम को पता चला कि सीता का हरण किसी और नहीं बल्कि लंका के राजा रावण ने किया है तो युद्ध के लिए भगवान दल बल के साथ लंका के राजा रावण से युद्ध करने के लिए लंका की ओर प्रस्थान करने लगे । लेकिन भारत की सीमा के बाद समुद्र होने से कोई भी इंसान लंका की तरफ जा पाने में असमर्थ हैं । कहते हैं समुद्र पर सेतु बनाने की योजना को सफल होने के लिए और युद्ध पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान श्री राम ने रामेश्वरम में भगवान शिव पर मां गंगा का जल समर्पित किया था ।  कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि भगवान श्री राम ने उससे पहले बिहार के सुल्तान गंज जनपद से गंगा जल भरकर कांवड़ को बाबा धाम शिव लिंग में समर्पित किया था। 

लंका के रावण ने भरी थी पहली‌ कांवड़

कांवड़ यात्रा के संबंध में विभिन्न पौराणिक ग्रंथों व विभिन्न मतों के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले लंका के राजा रावण ने किया था । इसके पीछे एक बहुत प्रसिद्ध कथा आती है कि जिस समय देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया शुरू किया । समुद्र के मथने से भांति भांति प्रकार की दुर्लभ वस्तुएं देवताओं और दैत्यों को मिलने लगीं । धन , लक्ष्मी और अमृत मिलने के बाद एक समय ऐसा आया जब समुद्र से विष का खतरनाक प्याला निकला ऐसी मान्यता है कि वो विष का प्याला इतना खतरनाक था कि अगर प्रथ्वी पर उसकी एक बूंद भी छिटक जाती तो पूरी सृष्टि का विनास हो जाता ‌। देवताओं और राक्षसों के अनुनय विनय से भगवान भोलेनाथ ने उस विष को पी लिया जिसके प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया । इस घटना के बाद भगवान शिव को नकारात्मक प्रभावों ने घेराव शुरू कर दिया । रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था । उससे भगवान शिव की यह स्थिति देखी नहीं गई । रावण ने भगवान शिव को विष के प्रभाव से मुक्त करने के लिए मां गंगा का पावन जल से शिव जी का अभिषेक किया । ऐसी मान्यता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई ‌। 

देवताओं ने शुरू किया था कांवड़ यात्रा

कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन की उपरोक्त कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने विष का प्याला पी लिया । उसे बाद भगवान शिव को जब विष के नशे ने घेर लिया तो वहां मौजूद देवताओं का ह्रदय द्रवित हो गया और उन्होंने भगवान शिव के मंदिर पर गंगाजल से अभिषेक करना शुरू कर दिया । कहते हैं थभु से भगवान शिव के भक्त कांवड़ यात्रा लेकर भूत भावन भगवान भोलेनाथ के दरबार में जाने लगे हैं। 

Frequently Ask Questions (FAQ)

1- कांवड़ कहां से भरें ?

कांवड़ यात्रा में जाने के लिए आप अपने आस पास स्थित किसी भी ऐसे स्थान को चुन सकते हैं जहां मां गंगा का प्रवाह अहर्निष होता है । मां गंगा से जल भरकर किसी भी प्राचीन शिव मंदिर पर चढ़ाने से अत्यंत पुण्य मिलता है ।

2- गढ़ मुक्तेश्वर कहां है ?

गढ़ मुक्तेश्वर अमरोहा जिले में स्थित मां गंगा का एक प्राचीन घाट है ‌। सावन में लाखों की संख्या में शिव भक्त यहां पर कांवड़ भरने के लिए आते हैं । ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शिव के अनन्य भक्त भगवान परशुराम ने यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी की थी ‌।

3- सबसे पहले कांवड़ किसने भरा था ?

कांवड़ भरने के संबंध में विभिन्न विद्वानों के मत अलग अलग है । कुछ विद्वानों की मान्यता है कि श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा को शुरू किया था तो वहीं कुछ लोग भगवान परशुराम को पहला कांवड़िया मानते हैं । कुछ लोग ऐसी भी मानते हैं सबसे पहले कांवड़ शिव के भक्त रावण ने भरा था । कुछ विद्वान राम को पहला कांवडिया मानते हैं।  

4- कांवड़ कैसे शुरू हुई ?

समुद्र मंथन के बाद भगवान शिव को देवताओं से विष पीने की प्रार्थना की । देवताओं और राक्षसों के अनुनय विनय से भगवान भोलेनाथ ने उस विष को पी लिया जिसके प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया । इस घटना के बाद भगवान शिव को नकारात्मक प्रभावों ने घेराव शुरू कर दिया । रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था । उससे भगवान शिव की यह स्थिति देखी नहीं गई । रावण ने भगवान शिव को विष के प्रभाव से मुक्त करने के लिए मां गंगा का पावन जल से शिव जी का अभिषेक किया । ऐसी मान्यता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई ‌। 

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